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(उ०प्र०)
भारतीय संविधान का चौथा स्तंभ पत्रकारिता हमारे सिस्टम का एक अभिन्न अंग है परन्तु फिर भी बेहद उपेक्षित होने के साथ ही दमनकारी नीतियों का शिकार होने के कारण आज डरावनी स्थिति में है। यह एक कड़ुआ सच है जिसे स्वीकार करना बहुत मुश्किल काम है, लेकिन सच तो सच होता ही है। उसे आप स्वीकार करें या नजर अंदाज करें या फिर सच को बोलने, लिखने वालों पर प्रतिशोध की भावना से जुल्म करें उसे झूठे मुकदमों में फंसा दें या फिर हमला कर उसे मार दें,
परन्तु सच कभी मरता नहीं है, क्यों कि सत्य ही ईश्वर का स्वरूप होता है और ईश्वर तो श्रष्टि का रचयिता है। मां जानकी का अपहरण रावण ने किया था लेकिन सत्य समाप्त नहीं हुआ। राम भक्त हनुमान को रावण ने बंदी बना लिया था लेकिन सत्य फिर भी समाप्त नहीं हुआ।
भगवान प्रभु राम को अहिरावण पाताल लोक में अपहरण कर ले गया था तब भी सत्य समाप्त नहीं हुआ तो फिर कलमकार को प्रतिशोध की भावना से प्रताड़ित कर आप क्या सोचते हैं कि सत्य समाप्त हो जाएगा ?
नहीं सत्य ही ईश्वर है, यह अनोखा सत्य है ध्रू सत्य है, कलम का सच्चा सिपाही कभी भी किसी का जातीय दुश्मन नहीं होता लेकिन यहां पर मैं एक सच्चे कलमकार की बात लिख रहा हूं यह बात बिकाऊ लोगों पर लागू नहीं होती। पत्रकार तो समाज राष्ट्र का आइना होता है उसके द्वारा लिखे गए लेख, समाचार निष्पक्ष होते हैं लेकिन उन समाचारों का असर उन पर होता है जो जिम्मेदार होते हैं। आप सोच कर तो देखो कि संविधान का पहला या दूसरा नहीं चौथा यानी अंतिम स्तंभ क्यों है ? पत्रकारिता जहां पर सरकार की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य आदि की सुविधाएं समाप्त होती हैं, वहां पर मीडिया तमाम अभावों से त्रस्त होकर भी एक जुनून के लिए कार्य करता है तो फिर दोषी कौन है।
"जिसे आप चुनते हैं या जिसे हमारे देश का सिस्टम अधिकार देता है सुविधाएं देता है, सैलरी देता है"।
आखिर में इसका कौन जिम्मेदार है, निर्णय आप करें ..?
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