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नोट बंदी से क्या काले घन और भ्रष्टाचार पर लगा अंकुश..?

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नोटबंदी से गरीब वर्ग को तो कोई परेशानी नहीं है लेकिन उच्च वर्ग जरूर परेशान होता नजर आ रहा है। उल्लेखनीय है कि करीब छह वर्ष पूर्व नोटबंदी हुई थी मात्र कुछ घंटे के नोटिस पर पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट कागज के टुकड़े बनकर चलन से बाहर हो गए थे, जिससे आम जनता का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ था। उद्योग-धंधे और व्यापार भी नोटबंदी के दुष्प्रभावों से बच नहीं पाए थे। नोट बंदी का मुख्य उद्देश्य काले घन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना बताया गया था।

बीते छह वर्षों में नोटबंदी के परिणाम और आंकड़े आधिकारिक तौर पर देश के सामने प्रस्तुत नहीं हुए। अब एक बार फिर दो हजार रुपए के नोट बंद करने की घोषणा हो गई। अगर दो हजार के नोट पर बंदिश से काला धन खत्म हो सकता है तो इसे प्रारंभ करने का औचित्य क्या था.? शुरुआती दौर में भी इसके पीछे कोई ठोस कारण नजर नहीं आ रहा था।

काला धन तो कुछ ही लोगों के पास हो सकता है पर नोटबंदी का प्रभाव तो सभी देशवासियों को भुगतना पड़ता है। विगत नोटबंदी के परिणाम और व्यापक विश्लेषण के बगैर एक और करीब-करीब नोटबंदी जैसा कठोर कदम अंधेरे में तीर चलाने जैसा है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि इस बार जनता को देश में व्याप्त काले धन की सच्चाई का पता चल सकेगा।







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